Monday, June 22, 2009

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

I found this ghazal on a blog while doing some surfing for Bulleh Shah work. Liked it and posting it here.

Written by Ahmed Faraz

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

[रंजिश = Anger, Annyoance]

पहले से मरासिमं ना सही फिर भी कभी तो,
रस्म-ओ-राहे दुनिया की निभाने के लिए आ

[मारासिम = Friendship]

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ

[सबब = reason]

कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

[पिंदार-ए-मुहब्बत = Love's Pride]

एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम,
ऐ राहत-ए-जान मुझ को रुलाने के लिए आ

[लज़्ज़त-ए-गिरिया = taste of tears, महरूम = devoid,राहत-ए-जान = Peace of life]

अब तक दिल-ए-खुश फहम को तुझ से हैं उम्मीदें,
ये आखरी शम्मे भी बुझाने के लिए आ

माना की मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिए आ